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सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर / 'साक़ी' फ़ारुक़ी

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सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर
जी लरज़ उट्ठा तेरी आँखों देखकर

प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख कर
भागती जाती हैं लहरें ये तमाशा देख कर

एक दिन आँखों में बढ़ जाएगी वीरानी बहुत
एक दिन रातें डराएँगी अकेला देख कर

एक दुनिया एक साए पर तरख खाती हुई
लौट कर आया हूँ मैं अपना तमाशा देखकर

उम्र भर काँटों में दामन कौन उलझाता फिरे
अपने वीराने में आ बैठा हूँ दुनिया देख कर