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सोच साथ की / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
बहुत आजमाया अपने आपको इन ठण्डी आधी अधूरी छांव में
आओ अब तप लें थोड़ा गरम हवाओं में
थोड़ा तुम बदलो, थोड़ा हम बदल जाए
कुछ तो काम साथ मिल के किया जाए
बहुत हो चुका क़त्ल-ए-आम अब
आओ मिल के लाशों को गिना जाए
ख़ून का हिसाब लगाया जाए
कुछ तो काम साथ मिल के किया जाए
बहुत देर हो चुकी है अपने-अपने धर्मों का बचाव करते
अब इंसानियत आजमाई जाए
आओ मिलके इस धरती को बचाया जाए
कुछ तो काम साथ मिल के किया जाए।
तुम्हारी तरफ का चाँद
क्या मेरी तरफ के चाँद से अलग है?
चलो चाँदनी रात में अलख जगाई जाय
कुछ तो काम साथ मिल के किया जाय।