मैनें सपना देखा मैं ढूँढ रही हूँ कोई चीज,
जो छुपी हो किसी जगह या खो गयी हो बेड के नीचे, सीढ़ियों के नीचे या एक पुराने पते के नीचे।
मैंने तलाशा वार्डरोब में, संदूको और दराज़ों में
व्यर्थ ही भरे हुए बेकार की चीजों से।
अपने सूटकेसों से निकाले मैंने
साल और यात्राएँ जो की थीं मैंने।
मैंने निकाले अपनी जेबों से
पुराने पड़ चुके पत्र, कचरा, पत्ते जो नहीं थे मेरे नाम।
मैं हाँफ रही हूँ
आराम से, असुविधा से रखने उठाने से।
मैं भटकती रही बर्फ की सुरंगों और स्मृतिविहीनता में।
मैं अटकी रही कटीली झाड़ियों और व्यर्थ के अनुमानों में।
मैं तैरती रही हवा और बचपन की घास से होती हुई।
मैंने कोशिश की पूरा कर लेने की
इससे पूर्व कि पुरानी पड़ चुकी साँझ गिराती
पर्दा, मौन।
अंत में मैंने यह जानना रोक दिया कि मैं
खोज रही थी क्या इतनी देर से।
मैं जाग गयी।
मैंने देखी अपनी घड़ी।
सपने में नहीं लगा था बस ढाई मिनट का भी समय।
यही हैं वह दाँव जो खेलता है समय
तब से ही जब से मैं टकराने लगी हूँ
सोते हुए सिरों से।