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सोने का पिंजरा बनवाकर, तुमने दाना डाला दोस्त / प्रमोद रामावत ’प्रमोद’

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सोने का पिंजरा बनवाकर, तुमने दाना डाला दोस्त ।
हम तो थे नादान पखेरू, अच्छा रिश्ता पाला दोस्त ।
 
हम तो कोरे काग़ज़ भर थे, अपना था बस दोष यही,
तुमने पर अख़बार बनाकर, हमको खूब उछाला दोस्त ।
 
हमने इस साझेदारी में, अपना सब कुछ झोंक दिया
तुम तो पक्के व्यापारी थे, कैसे पिटा दिवाला दोस्त ।
 
कल थे एक हमारे आँगन, किसने ये इन्साफ़ किया
तुमको तो दिल्ली की गलियाँ, हमको देश निकाला दोस्त ।
 
सच्चाई पर चलते-चलते, उस मंज़िल तक जा पहुँचे
सब लोगों ने पत्थर मारे, तू भी एक उठा ला दोस्त ।
 
लोग वतन तक खा जाते है, इसका इसे यकीन नहीं
मान जाएगा तू ले जाकर, दिल्ली इसे दिखा ला दोस्त ।