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सोने के दौरिया लिहले, जनक रिसि ठाढ़ हे / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
परिछन के समय दुलहा नींद में झूम रहा है। उसका परिछन करने के लिए लड़की का पिता तैयार है। दुलहे से सँभलकर बैठने और उससे अपने वस्त्राभूषणों को सँभालने का आग्रह किया गया है। इस गीत से ऐसा आभास मिता है कि दुलहा अभी अबोध है और दूर से आने के कारण थक गया है।
सोने के दौरिया<ref>कमाची की बुनी हुई बहुत छोटी टोकरी; दौरी</ref> लिहले<ref>लिये हुए</ref>, जनक रिसि ठाढ़ हे।
बैठल दुलहा पालकी पर, आरती उतारू हे॥1॥
निनिया<ref>नींद से</ref> के मातल दुलहा, झूमि झूमि जाय हे।
सिर के मौरिया दुलहा, लेहो न सँभारि हे॥2॥
सोने के दौरिया लिहले, जनक रिसि ठाढ़ हे।
बैठल दुलहा पालकी पर, आरती उतारू हे॥3॥
निनिया के मातल दुलहा, झूमि झूमि जाय हे।
हाथ के रूमाल दुलहा, लेहो न सँभारि हे॥4॥
शब्दार्थ
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