भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोमा आई है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अभी अभी सोमा आई है,
चलकर चाल निराली।
बोली अंकल कथा सुनाओ,
मुझको परियों वाली।
उन परियों की कथा सुनाना,
जिनके पंख लगे हों।
उन पंखों पर सुन्दर-सुन्दर,
प्यारे रंग खिले हों।
हमने कही कहानी आई,
उसके मुख पर लाली।
बोली अंकल कथा सुनाओ,
मुझको परियों वाली।
उसको कथा सुनाने पर मन,
मेरा भी खिल जाता।
बाहर से भीतर तक सारा,
घर पुलकित हो जाता।
खुशियों के मारे सोमा की
बजने लगती ताली।
बोली अंकल कथा सुनाओ,
मुझको परियों वाली।
सोमा जब तब आ जाती है,
घर को महकाती है।
चिड़ियों को चुप न रहने दे,
उनको चहकाती है।
दिन को जैसे होली मनती,
होती रात दिवाली।
बोली अंकल कथा सुनाओ,
मुझको परियों वाली।