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सोया नींद में, जागा सपने में / अज्ञेय
Kavita Kosh से
सोया था मैं नींद में को
एकाएक सपने में
गया जाग :
सपना आग का
लपलपाती ग्रसती
हँसती
समाधि की विभोर आग।
फिसलता हुआ
धीरे-धीरे गिरा फिर
सुते हुए, ठंडे
जागने में।
आग शान्त, रक्षित,
सँजोयी हुई-
और भी कई आगों के साथ
सोयी हुई।
पहले भी तो
जागा हूँ
ऐसे, सपने में:
जलते हुए समाधिस्थ
अपने में;
फिसल कर गिरने को
जागने की नींद में;
आगें सब सुँती हुई, ठंडी,
सोई हुई,
और भी पुरानी कई आगों के
साथ ही सँजोयी हुई-
खोयी हुई!
नयी दिल्ली, अक्टूबर, 1969