भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोया हुआ हूँ, टूटी नीन्द और फटे सपने लिए / शक्ति चट्टोपाध्याय / मीता दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अल सुबह नीन्द में दिखी तुम,
सिर के ऊपर के आकाश को खिड़की के सीखचें बाँट देते हैं हिस्सों में

नमक युक्त केश, हाथ गड्डमड्ड, बिस्तर पर बिखरा हुआ रेत
दोनों ओर कपास के टीले, घर के भीतर ही झाऊ के पेड़
अन्धेरे में दूध में जल पड़ता है होटल के बरामदे में ही...

सोया हुआ हूँ, टूटी नीन्द और फटे सपने लिए
तुम्हारा ताज़ा चेहरा अनमने में थामे कमल की तरह

सोया हुआ हूँ, समीप ही समन्दर का पानी पछाड़ें खा रहा है
क़िस्मत है की टूटती ही नहीं है सपने में भी,

उस दिन की तरह उनीन्देपन में
जब किशोरी सी तुमने दरवाज़े की फाँक से झाँककर कहा था, जाओ
चले जाओ, और कभी मत आना
नहीं आना मेरे क़रीब, किसी भी दिन, कभी भी नहीं आना ।

नहीं आया, दुख की राह में दुखित होकर गया और
मुँह के बल जा गिरा
उठ नहीं पाया साँप की तरह फन उठा हिंसक होकर
पूँछ के बल खड़ा भी नहीं हुआ चान्द खाऊँगा सोचकर

तेज़ भूख, तेज़ प्यास थी फिर भी खड़ा नहीं हुआ चान्द खाऊँगा सोचकर
आधी क़िस्मत खाऊँगा सोचकर भी नहीं जागा कभी

सोया हुआ हूँ, टूटी नीन्द और फटे सपने लिए
तुम्हारा ताज़ा चेहरा अनमने में थामे कमल की तरह
सोया हुआ हूँ, समीप ही समन्दर का पानी पछाड़ें खा रहा है ।

मीता दास द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित