भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सो बल कहा भयौ भगवान / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग भैरव

सो बल कहा भयौ भगवान ?
जिहिं बल मीन रूप जल थाह्यौ, लियौ निगम,हति असुर-परान ॥
जिहिं बल कमठ-पीठि पर गिरि धरि, जल सिंधु मथि कियौ बिमान ।
जिहिं बल रूप बराह दसन पर, राखी पुहुमी पुहुप समान ॥
जिहिं बल हिरनकसिप-उर फार्‌यौ, भए भगत कौं कृपानिधान ।
जिहिं बल बलि बंधन करि पठयौ, बसुधा त्रैपद करी प्रमान ॥
जिहिं बल बिप्र तिलक दै थाप्यौ, रच्छा करी आप बिदमान ।
जिहिं बल रावन के सिर काटे, कियौ बिभीषन नृपति निदान ॥
जिहिं बल जामवंत-मद मेट्यौ, जिहिं बल भू-बिनती सुनि कान ।
सूरदास अब धाम-देहरी चढ़ि न सकत प्रभु खरे अजान ॥

भावार्थ :--भगवान् ! आपका वह बल क्या हो गया जिस बल से आपने मत्स्यावतार धारण करके (प्रलय समुद्र के) जल को थहा लिया और असुर (हय ग्रीव)को मारकर वेदों को ले आये, जिस बल से आपने कच्छपरूप लेकर पीठ पर सुमेरु पर्वत को धारण किया और जिस बल से क्षीरसागर का मंथन करके स्वर्ग की (स्वर्ग मैं देवताओं की) प्रतिष्ठा की, जिस बल से वाराहरूप धारण कर पृथ्वी को आपने दाँतों पर एक पुष्प के समान उठा लिया, जिस बल से (नृसिंहरूप धारण करके) हिरण्यकशिपु का हृदय आपने चीर डाला और अपने भक्त (प्रहलाद) के लिये कृपा निधान बन गये, जिस बल से आपने पृथ्वी को तीन पद में नाप लिया और राजा बलि को बाँधकर सुतल भेज दिया, जिस बल से स्वयं उपस्थित होकर आपने (परशुरामरूप में) ब्राह्मणों की रक्षा की और उन्हें राज्यतिलक देकर प्रतिष्ठित किया (पृथ्वी का राज्य ब्राह्मणों को दे दिया), जिस बल से आपने (रामावतार में) रावण के मस्तक काटे और विभीषण को (लंका का)निर्भय नरेश बनाया,जिस बल से (द्वन्द्वयुद्ध करके)जाम्बवान् के बल के गर्व को आपने दूर किया और जिस बल से पृथ्वी की प्रार्थना सुनी । (भू-भार हरण के लिये अवतार लिया, वह बल कहाँ गया?) सूरदास जी कहते हैं--प्रभो ! आप तो अब सचमुच अनजान ( भोले शिशु) बन गये और घर की देहली पर भी चढ़ नहीं पाते हैं !