मेरे केश 
काली घटाओं-जैसे नहीं हैं 
न आँखें मछलियों-सी 
चाँद जैसी उजली हूँ 
न फूलों जैसी नाजुक 
मेरे हाथ 
खुरदुरे और मजबूत हैं 
धूप में काम करने से
स्याह पड़ गया है मेरा साँवला रंग 
जुटा लेती हूँ 
अपनी रोटी 
खुद अपनी ही 
हाड़-तोड़ मेहनत से 
नहीं गड़ाती 
दूसरों के धन पर आँख 
मेरी देह से फूटती है 
एक आदिम गंध 
क्या तुम मुझसे प्यार करोगे?