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सौभाग्य / तादेयुश रोज़ेविच
Kavita Kosh से
कैसा सौभाग्य कि जंगलों में
रसभरियाँ चुन सकता हूँ
मेरा ख़याल था कि
न अब जंगल हैं न रसभरियाँ
कैसा सौभाग्य कि पेड़ की छाया में
लेटा रह सकता हूँ
मेरा ख़याल था कि पेड़
अब छाया नहीं देते ।
कैसा सौभाग्य कि मैं तुम्हारे साथ हूँ
और मेरा दिल इतना धड़क रहा है
मेरा ख़याल था कि आदमी
अब बेदिल हो गया है ।