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सौ दिन को मारग तहाँ की बिदा माँगी पिया / पद्माकर
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सौ दिन को मारग तहाँ की बिदा माँगी पिया ,
प्यारो पदमाकर प्रभात राति बीते पर ।
सो सुनि पियारी पिय गमन बराइबे को ,
आंसुन अन्हाइ बैठी आसन सुतीते पर ।
बालम बिदेसै तुम जात हौ तो जाउ पर ,
साँची कहि जाउ कब ऎहौ भौन रीते पर ।
पहर कै भीतर कै दोपहर भीतर ही ,
तीसरे पहर केधौँ साँझ ही बितीते पर ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।