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सौ सौ धर्मांधों से बढ़ कर / सुमित्रानंदन पंत

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सौ सौ धर्मान्धों से बढ़कर
पूत एक मदिरा का जाम,
चीन देश से भी अमूल्य रे
मधु का फैला फेन ललाम!
निखिल सृष्टि की प्रिया सुरा यह,
जीवों के प्राणों की सार,
सौ सौ गुलवदनों से मादक
गुलनारी मदिरा, ख़ैयाम!