रोज अलसुबह
सबसे पहले जागकर
सारा घर
बुहारती, संवारती है
लगता है..
वह घर नहीं
घर में रहनेवालों का
दिन संवारती है
रोज गए रात
सबके सो चुकने के बाद
थकी-मांदी
जब बिस्तर पर आती है
उसकी आंखों में नींद नहीं
आनेवाले दिन के
काम होते हैं
स्त्री को पता रहता है
घर में किसे, कब, क्या चाहिए
उसके पास है हरेक के
पल पल का हिसाब
पर कितने घरों में...
कितनों ने पढी होंगी
स्त्री के मन की किताब...?