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स्त्री जीवन एक प्यूमिक स्टोन / आरती तिवारी
Kavita Kosh से
जड़ों से फूटीे वे तंतुनुमा
बाहर आयीं
कुछ दिनों बाद दिखने लगी
ललछौंही हरीतिमा
वे इठलाने के दिन थे
नरम नरम उजाले,सुनहरी मुस्कानें
मिट्टी भी हुलसती,देती असीसें
बीतता चला गया
शैशव,बालापन,कैशौर्य भी
होंने लगीं सख़्त,
लाल लाल कोंपलें खा खाकर ठोकरें
घिसाती रहीं बर्तनों सी
फ़ीची गई कपड़ों सी
उलीची जाती रहीं
बावड़ियों सी
सुख झरते रहे भीतर से
सरंघ्र होते रहे मन के ठोस पत्थर
दुःख का रास्ता साफ होता गया दिनों दिन
मिट्टी की तरह देह
होती चली भुरभुरी
प्यूमिक स्टोन सी
जीवन को उजला बनाती रही
स्त्रियाँ।