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स्त्री / मनीषा जोषी / મનીષા જોષી
Kavita Kosh से
बस स्टेशन के सार्वजनिक शौचालय की दीवार पर
पहली बार पढ़ा था मैंने —
तेरी माँ की योनि
उस वक़्त वहाँ बस स्टैण्ड के एक कोने में
चाय की एक दुकान थी
और उसकी बग़ल में था
एक अख़बार विक्रेता का स्टॉल
तब से जान लिया मैंने
कितनी गहरी होती है —
स्त्री की योनि
जो समा लेती है अपने अन्दर
इन सब चाय पी रहे
और अख़बार पढ़ रहे
पुरुषों को ।