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स्नेह की संहिता रही है माँ / शिव ओम अम्बर

स्नेह की संहिता रही है माँ,
भागवत की कथा रही है माँ।

इक मुझे चैन से सुलाने को,
मुद्दतों रतजगा रही है माँ।

दाह खुद को प्रकाश जगती को,
वर्तिका की शिखा रही है माँ।

मंजु मुस्कान की लिखावट में,
अश्रुओं का पता रही है माँ।

दृष्टि में ले अनन्त आर्द्राऐं,
उम्र भर मृगशिरा रही है माँ।