भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्नेह भर दो / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
आज मेरे मौन बुझते दीप में प्रिय, स्नेह भर दो !
- जगमगाए वर्तिका आलोक फैले
- लोक मेरा नव सुनहरा रूप ले ले
- आर्द्र आनन पर अमर मुसकान खेले
मूक हत अभिशप्त जीवन, राग रंजित प्रेय वर दो !
- बन्द युग-युग से हृदय का द्वार मेरा
- राह भूला, तम भटकता प्यार मेरा
- भग्न जीवन-बीन का हर तार मेरा
जग-जलधि में डूबते को बाँह दो, विश्वास-स्वर दो !