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स्पर्श / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
बहुत छूता था तुम्हें
मैं
पहले
और सोचता था
तुम पुलकित हो रहे होगे|
पर उस दिन
तुम्हारे रोष की रोशनी मेँ
दिखाई दिए मुझे
तुम्हारी त्वचा पर पड़े हुए
असंख्य नीले निशान|
तो क्या इतने दिनो
मैं
तुम्हारी केवल त्वचा छूता रहा
तुम्हें एक बार भी नहीं छु सका!