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स्मरण / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
हरियर खसखस -
अपराजिताक छिड़िआयल लत्ती सँ गछारल!
विंहुसैतवरवश -
हरसिंगारक अलसायल सांगह
कोढ़िआयल मूडी आ ठकुआयल ठाढिक ल'ग
शरदक सिहरैत साँझ मे
गमकैत आँगनक हहरैत पातक छानल
चमकैत चानक त'र -
तकैत रही -
जौडखट्टा पर पड़ल पड़ल
फूजल दुरुक्खा सं
श्रीमतीक शनीचरीबाट!
नहि अयलीह -
हा! हन्त!
हहरिक' रहि गेल छलहुँ !
के क' देतनि,
आलूक अनोन साना
अरबा चाउरक भात!
कत' भेटतनि?अरबाइन औंटल दूध
आइ छलनि अनोना -
रहि गेल होयतीह ओहिना
डिप्टीनिसपिटरक डिप्टेशन मे