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स्मृतियाँ- 3 / विजया सती

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उनके जीवन के साथ
उनके दुख भी गए
वे किसी को कोई दुख न दे गए
न किसी का कुछ ले गए
बहुत कम जो भी जोड़ा था
तन की मेहनत से
मन की लगन से
उसी से था घर भराभरा -
उनके जाने के बाद भी
कई दिनों तक रहेगा
रसोई के भण्डार में
नमक तेल चीनी के साथ
और भी बहुत कुछ उनसे जुड़ा

कोई ऋण बाकी न रहा उन पर
क्या उऋण हो सकेगी संतान?

करेगी वह सभी के साथ
पिता और माँ जैसा निस्वार्थ
और बिना शर्त प्यार?

इसीलिए तो
इतना अभावग्रस्त कर देने वाला है
पिता के बाद माँ का भी चले जाना!