भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मृति विसर्जन / रूचि भल्ला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अम्मा सुंदर हैं लोग कभी उन्हें सुचित्रा सेन कहते थे
अम्मा कड़क टीचर थीं स्कूल के बच्चे उनसे डरते थे
अम्मा अब रिटायर हैं और मुलायम हैं
अम्मा गर्मियों में आर्गेन्ज़ा बारिश में सिंथेटिक
सर्दियों में खादी सिल्क की साड़ियाँ पहनती थी
साड़ी पहन कर स्कूल पढ़ाने जाती थीं
वे सारे मौसम बीत गए हैं
साड़ियाँ अब लोहे के काले ट्रंक में बंद रहती हैं
ट्रंक डैड लाए थे उसे काले पेंट से रंग दिया था
लिख दिया था उस पर डैड ने अम्मा का नाम
सफेद पेंट से
ट्रंक तबसे अम्मा के आस-पास रहता है
स्पौंडलाइटिस आर्थराइटिस के दर्द से
अम्मा की कमर अब झुक गई हैं
कंधे ढलक गए हैं
पाँव की उंगलियां टेढ़ी हो गई हैं
अम्मा अब ढीला-ढाला सलवार -कुर्ता पहनती हैं
स्टूल पर बैठ कर अपनी साड़ियों को धूप दिखाती हैं
सहेज कर रखती है साड़ियाँ लोहे के काले ट्रंक में
जबकि जानती हैं वह नहीं पहनेंगी साड़ियाँ
पर प्यार करती हैं उन साड़ियों से
उन पर हाथ फिराते-फिराते पहुंच जाती हैं इलाहाबाद
घूमती हैं सिविललाइन्स चौक कोठापारचा की गलियाँ
जहाँ से डैड लाते थे अम्मा के लिए रंग-बिरंगी साड़ियाँ
अम्मा डैड के उन कदमों के निशान पर
पाँव धरते हुए चलती हैं
चढ़ जाती हैं फिर इलाहाबाद वाले घर की सीढ़ियाँ
घर जहाँ अम्मा रहती थीं डैड के साथ
लाहौर करतारपुर और शिमला को भुला कर
घर के आँगन से चढ़ती हैं छत की ओर पच्चीस सीढ़ियाँ
अम्मा छत पर जाती हैं
डैड का चेहरा खोजती हैं आसमान में
शायद बादलों के पार दिख जाए
उन्हें रंग-बिरंगे मौसम
जबकि जानती हैं बीते हुए मौसम ट्रंक में कैद हैं
अम्मा काले ट्रंक की हर हाल में हिफ़ाज़त करती हैं
सन् पचपन की यह काला मुँहझौंसा पेटी
अम्मा के पहले प्यार की आखिरी निशानी