भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्याह इस रात में जुगनू का दिया है तो सही / हरेराम समीप
Kavita Kosh से
स्याह इस रात में जुगनू का दिया है तो सही
दिल के बहलाने को इक लोकसभा है तो सही
पेड़ हैं‚ फूल हैं, पंछी हैं‚ हवा है तो सही
रेत–सी जिं.दगी में ख्वाब हरा है तो सही
देखकर रेल के डिब्बे बुहारता बचपन
लोग कह देते हैं– “ पाँवों पे खड़ा है तो सही”
खाली पन्नों पे वो सूरज बनाता रहता है
कुछ न कुछ उसको अँधेरे से गिला है तो सही
शक का माहौल घने मेघ–सा फैला है मगर
धूप के टुकड़े–सा विश्वास बचा है तो सही
अपनी तहजीब सदा अपनी हुआ करती है
थेगरों वाली सही कोई कबा है तो सही