अत्याचार-पीड़ितों की आशा-लता आँसुओं से
सींचते हैं वीर दुख याद कर रोते हैं।
पथी के पदों की चल सम देह गेह का
विचार झाड़ चित्त से प्रवृत्त तब होते हैं॥
बोते रणखेत में हैं शीश वे सहर्ष जिसे
देश है रखाता जागता वे पड़े सोते हैं।
जग में उजाला करने को निज शोणित से
दीपक स्वतंत्रता का शरमा सँजोते हैं॥