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स्वदेशी / दिनेश
Kavita Kosh से
अब तो खादी से प्रेम बढ़ाओ, पिया!
कहा मानो, विदेशी न लाओ पिया!
अब विदेशी वस्त्र से मुझको भी नफ़रत हो गई,
देश की संपत्ति विदेशों में से बहुत-सी ढो गई,
ज़रा भारत की दौलत बचाओ, पिया!
अब स्वदेशी वस्त्र से अपना शरीर सजाइए,
और मेरे वास्ते साड़ी स्वदेशी लाइए,
मुझे खादी का चादर ओढ़ाओ, पिया!
दीन-दुखियों का यही दुख दूर कर सकती, पिया!
गर्व भी परदेसियों का चूर कर सकती, पिया!
लाज अंगों की मेरे बचाओ, पिया!
जब तलक जिं़दा रहें तन पर रहे देशी वसन,
बाद मरने के उसी का, चाहिए हमको कफ़न,
यह संदेशा सभी को सुनाओ, पिया!
चाहते हो देश की गर कुछ भलाई तो ‘दिनेश’
तुम स्वदेशी वस्त्र पहनाकर स्वदेशी हो सुवेश,
वीरता आप अपनी दिखाओ, पिया!
रचनाकाल: सन 1932