भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वप्न-शेष / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सपनों का क्या करो
कहाँ तक मरो
इनके पीछे

कहाँ-कहाँ तक
खिंचो
इनके खींचे

कई बार लगता है
लो
यह आ गया हाथ में

आँख खोलता हूँ
तो बदल जाता है दिन
रात में !