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स्वप्न / शशिप्रकाश
Kavita Kosh से
एक दिन अचानक
दहक उठेंगे पर्वत
सदियों के सोए संकल्प जागेंगे
विस्मृति के अँधेरे से
बाहर आ जाएँगी अजेय आत्माएँ
मुक्त होंगी कल्पनाएँ
सृजन के अग्निपक्षी निर्बन्ध
उड़ेंगे उन्मुक्त आकाश में ।