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स्वयम / मन्त्रेश्वर झा

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के छी हम,
नाम, पद, प्रतिष्ठा कि देह
मकान, दोकान, टाका कि सन्देह
जाति, धर्म, पुरुष, स्त्री कि संबंध
पहिलुका, कि नवका, कि भविष्यत्
के अनुबंध
जकरा अपन अपन आत्मा
कि किदन कहाँ दन कहैत छिऐक
से थिक सपना
कि अपने रचाओल कुत्सित नृत्य
हम आ अहाँ छी
अपन अपन आत्माक अवतार
आकि अपने रचल
कुटिल सपनाक भृत्य
के छी? की छी?
मौलिक छी, कि कौलिक
किबान्हल छेकल भौगोलिक
छी, तें अछि जगतक सृष्टि
आकि छी सृष्टिक परिणाम
नियत अछि नियति
नियन्ताके हाथ मे
आ कि नियन्ता छी स्वयं
नियतिओ छी अपने
जे छी से छी तऽ।
जाधरि छी ताधरि
महायात्राक ओ अनजान पथिक
कनियो अन्हार काटू, दीप बारू
ममताक मम नहि थिक
की अहम्?
संघर्ष हैत सफल तखने
जखन सुखद करब
वयम्, ‘ते’ यूयम्
चीन्हि सकब तखने टा
स्वयम् कि परम।