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स्वर्णिम विहान / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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उगलै पुरूब मंे सुरुजवा, ऊषा दुलहिन के भाल
सुहागिन के भाल के है बिन्दी, सगर सोना छितराल
नदिया समन्दर के जल पर, बनल स्वर्णिम है राह,
चुह-चुह बोलै कचबचिया, चिरैयाँ ध्वज वाह
मंद सुगंध शीतल है, चललै दखिन-समीर
कुहकै कोहलिया बगिचवा, कें-कें करै सब कीर
मंदिर में बजो लगल सगरो, कजै शंख घड़ियाल,
आय-माय घर में हे जागल सभे बुतरू औंघाल,
हुंकरो है गैया बथान में, लेरू बहुत रंभाय
खनके हे चूड़ी कंगनमा, अंगना बाढ़ गोरकी दाय
भीड़ लगल पनघट पर शोभै, माथा लेले कलश
लाल ओहार गुलमोहर के देखे सभे जन हलश,
चम्पा फुलाल रजनीगंधा, बेला जुही के कमाल,
पवन झुलावै फूलल फुलवा, देवी मैया दरवार
लाल-लाल नेहिया के फुलवा, जैसन फुललै अनार,
देखऽ देखऽ सजलै डगर में, गुलाबी कचनार
फूलल अमलतास अंगना, सजल पेड़े पर है हार,
बांधो है मुरैठा किसनमा, अप्पन खेत खलिहान
उगल सुरूज अजगुतवा, होलै स्वर्णिम बिहान।