स्वामी! यह क्या मन में आया!
किसके हित साधन हित सीता को वनवास दिलाया
‘अबकी दोष न था दासी का
देना था न भारत को टीका
चोर न क्या प्रभु के ही जी का
दूत सामने लाया!
‘वज्र गिराया सुखी सदन में
कैसे निष्ठुर बन कर क्षण में
भेजी नाथ! सगर्भा वन में
प्रिया सुकोमल काया!
‘रामराज्य का यश इसमें ही
बलि को सदा मिली वैदेही
हम कैसे चुप रहें भले ही
जग मुँह खोल न पाया!’
स्वामी! यह क्या मन में आया!
किसके हित साधन हित सीता को वनवास दिलाया