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स्वीकारोक्ति / धनन्जय मिश्र
Kavita Kosh से
हों
हमरा सूली पर चढ़ाय दे
कैन्हें कि हम्में
मरत्हैं रहलोॅ छियै
ऊ दीन-हीन वास्तें
जे आपनोॅ भाग्य से
टूटी केॅ
खोय चुकलोॅ छेलै
आपने आत्मविश्वास
जेकरोॅ आगू
खाली एक टा
भावशून्य भविष्य छेलै
सुन्नोॅ आकाश छेलै
जेकरा में
नै दिखावै छेलै
वै सिनी केॅ
आपनोॅ कोय रंग-रूप
अन्हारे-अन्हार छेलै
सब के आँखी के आगू
कैन्हेंकि
कोय पोती देलेॅ छेलै
सुरुज पर
कोलतार
कारोॅ कजरोटी के कारिख
जिनगी के एक-एक पल
जै सिनी लेॅ छेलै पहाड़।
हों
हम्में ऊ पहाड़ खोदी केॅ
बनैलेॅ छियै समतल
वही सिनी लेॅ
हों
हमरा सूली पर
चढ़ाय देॅ
कैन्हें कि हम्में
वै सिनी केॅ
बताय देलेॅ छियै
हौं सुरंग
जहाँ वै सिनी के भाग्य
बंद छै।