स्वीकार करने में समय लगता है / नीलोत्पल
जड़ों में रोपे हुए सच
बिखर जाएंगे एक दिन
काम और ईर्ष्या के बीच
उलझा जीवन
मांगता है पनाह
ज़रुरी नहीं जो तुमने कहा है
वह अंत तक वैसा ही बना रहेगा
आख़िर तक
नदी भी धाराओं और
किनारों में बदल जाती है
मैं क्या हूं इसकी चिंता नहीं
दस्तख़त भी नहीं बचा पाते
सिवाए बैंक खातों, आवेदनों
और मेरी अस्पष्ट सी पहचान को
मृत्यु के बाद वे भी संदिग्ध
मान लिए जाएंगे
कहानियां जहां खत्म होती हैं
मोड़ है वे सन्नाटे भरे
इनके बाद उनकी अपूर्णता के लिए
कोई इशारा नहीं
कविताएं जिन्हें बचाने के लिए नाकाफ़ी है किताबें
लाईब्रेरी के शेल्फ़ों में नहीं
उन्हें तो होना चाहिए हमारे बीच
ताकि उनकी क़ब्रों से भी
प्राप्त की जा सके आख़िरी तस्वीर
कोई एक सवाल पूरा नहीं होगा
हमारी दुश्ंिचताओं के लिए
यक़ीनन घिरना होगा
अपने ही बनाए सवालों और अधूरेपन से