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हँसने को बहुत है, न हँसाने को बहुत है / गिरिराज शरण अग्रवाल
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हँसने को बहुत है, न हँसाने को बहुत है
अफ़साना अभी मन का सुनाने को बहुत है
सौग़ात से ख़ाली नहीं संसार का दामन
तुम खोजने लग जाओ तो पाने को बहुत है
हर राह से अपने को बचाते हुए गुज़रो
इक दाग़ भी दामन पे ज़माने को बहुत है
क्यों लोग बताएँ मेरे चेहरे पे है कालिख
इक आईना सच्चाई बताने को बहुत है
कलियों पे लरजती हुई ऐ ओस की बूँदो !
क्या ताज़ा हुआ फूल खिलाने को बहुत है ?