हँसने खेलने के दिन / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
स्कूल के कमरे से छूट कर
चौगान में दूसरों के हुडदंग से मिल
बिखर जाने के दिन
हँसने खेलने के दिन।
लौट कर घर में घुसते हुए
कहीं जूते कहीं टोपी
कहीं बस्ता फेंकते हुए
माँ के आँचल से
लिपट जाने के दिन।
बरसते पानी में छपा छप
करते हुए कीचड़ उछाल कर
भूत बन जाने के दिन
माँ की प्यारी-प्यारी
डाट खाने के दिन।
जवां खुशियों का
घूंघट हटा कर प्यार के
होश उड़ जाने के दिन
सीने से लगा लेने के दिन।
मोती उछालती लहरों के किनारे
चाँद की ज्योत्स्ना में डूबी हुई
रातें किसी के संग बिताने के दिन
नए महमान को गोद में लेकर
झूला झुलाने चूमने के दिन
पोपली मुस्कान पर
सौबार मर जाने के दिन।
स्कूल से लौटती गुडिया को
चलती साइकिल पर
बिठा लेने के दिन
पुलकंन भरे रोमांच के दिन
वे दिन उम्र के साथ चल नहीं पाए
रह गए पीछे बहुत पीछे
आँगन में लेटा हुआ
जब उनको बुलाता हूँ
तो आज मेरी उम्र को
दर्पण दिखाने लगे है वे दिन।