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हंसइत-खेलइत घर / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

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बथान के खरहरा से
बहारइत दादा
भोरे-भोरे गबइत हतन पराती
त दाइयो
बढ़नी से बहारइत घर
अप्पन सुर देले हतन
दादा के सुर में।
घर-अंगना
गमगमाएल हए
हरिसंगार कें गंध से
भउजीओ उठ क भोरे-भोरे
नीपइत हतन
गाय के गोबर से अगना
नन्हकिरबा अगना के
एक ओरी लोटाइत हए
माटी में
त दाइ-दादा के करेजा
जुराइत हए देख क
अप्पन भरल-पुरल परिवार के
आऊर हरसिंगारों
देख के हंसइअऽ
ई हंसइत-खेलइत घर के।