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हंसो भाई पेड़ / माहेश्वर तिवारी
Kavita Kosh से
कहती है दूब
हँसो भाई पेड़
बाहर जितना देखते हो
धरती में
धसों भाई पेड़ ।
जड़ें बहुत गहरे ले जाओ
यहाँ वहाँ उनको फैलाओ
चील की तरह बाँहों पंजों में
आंधी को
कसो भाई पेड़ ।
चील किसे देती है सोचो
आसमान गुर्राए तो नोचो
गीत की तरह हरियाली पहनो
जन-जन में
बसो भाई पेड़ ।