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हज़ारों वहशतों का घर है दंगा / ज्ञान प्रकाश विवेक
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हज़ारों वहशतों का घर है दंगा
हक़ीक़त ये कि कैंसर है दंगा
जो पीता है लहू इंसानियत का
बहुत भूखा कोई कोई ख़ंजर है दंगा
ऐ हिन्दुस्तानियो,साज़िश से बचना
सियासत का कोई अस्तर दंगा
किसी कर्फ़्यूज़दा बस्ती का सच है
कि बाहर चुप मगर अन्दर है दंगा
मैं डरने लग गया हूँ मज़हबों से
कि उनके ही पसे-मंज़र है दंगा
किसी आसेब का चेहरा है कोई
या कोई मौत का मन्तर है दंगा
धुआँ, आँसू ,लहू ,कर्फ़्यू , उदासी
कुछ ऐसे हादसों का घर है दंगा
तुम्हारे शहर का मौसम भला था
तुम्हारे शहर में क्योंकर है दंगा