हज़ार वषों में-2 / रामकृष्ण पांडेय
तब फूलों में
ख़ुशबू नहीं होगी
रंग नहीं होंगे
नहीं होगा उनका कोई रूप, आकार
हम किसी एक फूल का नाम लेंगे
और हमारी कल्पना में उभर आएगा
उसका रूप, उसका रंग, उसकी गन्ध
तब हमारी कल्पनाओं में ही फूल खिलेंगे
हमारी इच्छाओं के अनुसार
हमारी इच्छाओं के अनुसार
चमेली की ख़ुशबू
गुलाब में होगी
गुलाब का रंग
जूही में होगा
और जूही अपनी ख़ुशबू के साथ
कमल के आकार में खिलेगी
सिर्फ़ हमारी कल्पनाओं में
सिर्फ़ हमारी कल्पनाओं में होंगे
बाग़-बग़ीचे, नदियाँ, वन
पेड़, पौधे और तमाम वनस्पतियाँ
महज इच्छाओं से ही
संचालित होगी वह दुनिया
आपको एक महल चाहिए
और महल में रहने का अहसास
सारा सुख, सारी सम्पदा
राग-द्वेष, भोग-विलास
सबकुछ मिल जाएगा अनायास
इच्छा करते ही
पैदा हो जाएगी
युद्ध की विभीषिका
और अकाल का सन्नाटा
भूख की मार
हाहाकार, अत्याचार, चीत्कार
जी हाँ,
तब फूलों में ख़ुशबू नहीं होगी
रंग नहीं होंगे
नहीं होगा उनका कोई रूप, आकार