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हत्यारे दिन / अश्वघोष
Kavita Kosh से
हत्यारे दिन नए साल के
घूम रहे सीना निकाल के ।
दहशत की भाषाएँ बोलें,
जीवन में अन्धियारा घोलें ।
फाँसे मछली बिन जाल के
हत्यारे दिन नए साल के ।
ज़ोर - जुलुम से रखते नाता,
इन्हें आदमी नहीं सुहाता ।
दुश्मन हैं ये जान - माल के
हत्यारे दिन नए साल के ।
मानवता के घोर विरोधी,
करुणा, दया, क्षमा सब खो दीं ।
हिंसा को रखते सम्भाल के,
हत्यारे दिन नए साल के ।