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हद पार हुई हद पार हुई / शैलेन्द्र सिंह दूहन
Kavita Kosh से
हद पार हुई हद पार हुई,
हैं साँसें तन पर भार हुई।
सपनों की चादर सिकुड़ गयी
भावों की बस्ती उजड़ गयी,
बिन हल-चल बिखरी हर माला
सब खिलती कलियाँ खार हुई।
हद पार हुई हद पार हुई।
अहसासों का आलिंगन कर
रूठा सावन अभिनंदन कर,
झींगुर दादुर वाली बोली
सच-मुच पैनी धार हुई।
हद पार हुई हद पार हुई।
ओढ सिसकियाँ यादें चुप हैं
मधुर मिलन की साधें चुप हैं,
झुलस गया वो पहला चुम्बन
सब आहें बीमार हुई।
हद पार हुई हद पार हुई।
चुभती उन रातों की सिलवट
बौखल-बौराई हर करवट,
रही नहीं वो ओस सुबह की
दोपहरी अँधियार हुई।
हद पार हुई हद पार हुई।
अभिसारों की कुन-मुन पूछे
शहनाई की हर धुन पूछे,
क्यों नेह निभाते बन्धन बिखरे?
ऐसी क्या तकरार हुई?
हद पार हुई हद पार हुई,