भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमने एक ग़लती की है / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
सुना कि तुमने कहा है : हमने
एक ग़लती की है, इसलिए
तुम हमसे दूर जाना चाहते हो ।
सुना कि तुमने कहा : जब
मेरी आँख में तकलीफ़ हो
तो मैं उसे निकाल फेंकता हूँ ।
बहरहाल इस तरह तुम कह रहे हो
कि तुम हमसे उसी तरह जुड़े हो, जैसेकि
कोई इन्सान जुड़ा होता है
अपनी आँख से ।
अच्छी बात है, कॉमरेड । लेकिन
इजाज़त हो तो एक बात कहूँ :
इस कहानी में इनसान तो हम सब हैं । तुम
सिर्फ़ आँख हो ।
और यह कब से होने लगा कि जब आँख
जिस इनसान ने ग़लती की उसकी आँख है
ख़ुद को अलग करने लगे ?
फिर वह ज़िन्दा कैसे रहेगी ?
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य