हमरा जीवन-वीणा के तार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
हमरा जीवन वीणा के तार
आउर जोर से आघात सह सकेला,
बजावऽ ओके झकझोर के
झंकारऽ ओके आउर कठिन सुर में!
हमरा प्राण में जवन राग जगावेलऽ
तवना के चरम तान अबहीं बाकी बा।
हमरा जीवन के जवन स्वर बजावेल
तवना के अंतिम अवरोह अबहीं बाजल कहाँ?
ओह चरम तान के, ओह अंतिम अवरोह के
निठुर मूर्च्छना में मूर्त्ति मत बना द!!
खाली करुण-कोमल रगिनी मेभें
हमरा अनुराग के मत रमावऽ
खाली मृदुल-मधुर स्वर के कौतुक से
हमरा जीवन के व्यर्थ मत बनावऽ
हमरा प्राण के निष्फल मत करऽ
हमरा संपूर्ण अग्नि के
प्रचंड रूप से प्रज्जवलित होखे द!
अपना संपूर्ण पवन के
प्रबल वेग से बहे द!!
अपना संपूर्ण आकाश के जगा के
अपना परिपूर्णता के प्रसार करऽ
हमरा जीवन-वीण के तर पर
अपना अंतिम राग,
निठुर से निठुर सुर में बाजे द!
हमरा जीवन-वीण के तर
आउर जोर से आघात सह सकेला!!