भ्रष्टाचारी अफसरशाही
धंधा करै तबाही रे
के नै मकड़ा जाल फँसै छै
केकरोॅ कोय गवाही रे ।।73।।
एक्को चोर नजर नै आवै
सगरो खड़ा सिपाही रे
रोजे करै जे लूट-पाट रे
लिखै छै कहाँ सियाही रे? ।।74।।
डारिये डारी उल्लू झलकै
डारिये डारी कौवा
ऊपरे-ऊपर चील झपट्टा
रोज चलावै डौवा ।।75।।
सगरो लगै रे धोखे-धोखा
नै केकर्हौ विश्वास
छल-प्रपंच के ई धंधा मेॅ
पुरै कि केकरो आश ।।76।।
करै नित्त जे गाय के सेवा
होकर्है पूछ धराबै छै
पार करावै जौने सागर
बैतरनी पार कराबै छै ।।77।।
राहू, केतू दूर करै छै
दूर शनिच्चर फेरा
ओकरे जापें कहिया कटतै
ई अनर्गल घेरा? ।।78।।
रोजे बरसै गोला-बारूद
रोजे होय छै छटनी रे
जाय करै छै कैन्हें नी
आतंक रहै नै कटनी रे ।।79।।
कन्हौं सूखलोॅ सावन रहलै
कान्न्हौं बाढ़ सतावै रे
के ऐन्होॅ जे मंतर मारी
सबके चौक पुरावै रे ।।80।।