हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-13 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’
मंतर के जोरें रे भैया
पाक करोॅ नी खाली रे
झूठे पोथी शंख फूकै छै
काम लगै छै जाली रे ।।97।।
करोॅ करामत रे ऐन्होॅ जे
भागेॅ सबटा आफत
दूर करोॅ सब संकट भारी
ई मंतर के मारफत ।।98।।
झूठोॅ के हाथें ई पोथी
किरंग ढंग दिखावै रे
हीरा तेॅ जौहरिहै चीनहै
जे जौहर दिखलावै रे ।।99।।
नजर जौहरी एक नै आवै
झूठे शान बघारै रे
साँच बात सेॅ केकरा नफरत
के नै कहाँ सकारे रे! ।।100।।
मंतर-जंतर, होम करी केॅ
आतंक आय मिटाबोॅ नी
नजर नै आवै एक्को रावण
ऐन्हंे मंत्र सुनाबोॅनी ।।101।।
विश्व शांति के बात करै छोॅ
घर के द्वन्द्व मिटाबोॅनी
बेटा-बाप-बहू के झगड़ा
घर सेॅ दूर भगाबोॅ नी ।।102।।
सकठे छै कोहराम देश मेॅ
चुप्पी कैहने साधै छोॅ
रोजे मंतर होम करी केॅ
अपन्हैं पीठी लाधै छोॅ ।।103।।
भंडफोड़ बगुला के एक दिन
होय छै कहियो भारी रे
रूप सचोॅ के देखिये लै छै
एक दिन मारिच मारी रे ।।104।।