भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमरो दिन एतैह / दिनेश यादव
Kavita Kosh से
गामक एक भतिज,
अठारह वर्षक किशोर
कहैत छलैह
काका, हमरो दिन एतैह यौं।
ओ जौ बनल
तीस वर्षक अधेर
फेर कहैत छलैह
काका, हमरो दिन एतैह यौ॥
ओकर भए गेल
चालिस वर्षक उमेर
तहियो ओकरा आश रहैय,
काका, हमरो दिन एतैह यौ।
ओकर पार भगेल
पचास वर्षक उमेर
आब ओकर बच्चा अधेड भएगेल–कहलैथ,
काका, हमरो दिन एतैह यौं।
सिनामे ओकरा अचानक
एकदिन दर्द भेल
तब डाक्टर कहलैथ
आब एकर दिन आबि गेलए।
आब चारो दिस
अफरादफरी मईच गेल
करकुटुम्भ जम्मा भेल देख कहलैथ
आब साँचे हमर दिन आबि गेलए।
घरक बन्हैन दिस
गामक बुढवा भजित तकैत छलए
अपन दिनके इन्तजार नहि करु, कहलैथ
आनन्द ओकेर भेटय जे आई खुलिके हँसे–बाजए।