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हमसफर तो मिला पर सफर तन्हा है / पल्लवी मिश्रा
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हमसफर तो मिला पर सफर तन्हा है,
कि बस आईना ही मेरा आशनां है।
कुरेदा है अक्सर जख्मों को उसने,
उस पर ये बँदिश कि रोना मना है।
उसके दिये हर जुल्म-ओ-सितम का
हमने भी डटकर किया सामना है।
ज़माने पे ज़ाहिर हो न जाए हकीकत,
पलकों पे अश्कों को पड़ा थामना है।
गम-ए-यार उन्हें भी कभी जो रुला दे,
आहत दिल की रब से यही कामना है।
छिटकेगी रौशनी जाने कब चाँदनी की?
अभी तो बादलों का कुहरा घना है।