भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमसफ़र, हमराह, सबके काम आती है सड़क / आशुतोष द्विवेदी
Kavita Kosh से
हमसफ़र, हमराह, सबके काम आती है सड़क
बस नहीं उसकी गली तक ले के जाती है सड़क
जब थिरकते हैं किसी की राह में बढ़ते कदम,
चलते-चलते साथ मेरे गुनगुनाती है सड़क
टूटती है ज़र्रा-ज़र्रा, हादसा-दर-हादसा,
कोई टकराए किसी से, चोट खाती है सड़क
हर नए चौराहे पर उगती नयी उलझन के साथ,
आदमी की ख्वाहिशों पर मुस्कुराती है सड़क
जूझते दोनों तरफ, लाचार फुटपाथों के बीच,
ज़िन्दगी के सैकड़ों मंज़र दिखाती है सड़क
पत्थरों के बोझ से लेकर गुलों के नाज़ तक,
वक़्त पड़ने पर कभी क्या-क्या उठाती है सड़क !