हमारा दिल हुआ अब सांवरे का ही दीवाना है
उसी के रूप ने दिल में किया मेरे ठिकाना है
नदी मिल कर सदा ही सिंधु से है धन्य हो जाती
नहीं सागर सिमट पाता उसे सब भूल जाना है
पड़ा है राह में पत्थर कदम हर खा रहा ठोकर
ठहर जाओ इन्हीं को तो हमें शंकर बनाना है
हृदय वृंदा विपिन मेरा नयन जल धार यमुना की
धरे तिरछे चरण उर पर यहीं वंशी बजाना है
बसेरा है यही तेरा अपावन तन भवन मेरा
यही है कूल कालिंदी यहीं तुझको रिझाना है