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हमारी एक दिन हमको ख़ताएँ मार डालेंगी / देवेश दीक्षित 'देव'
Kavita Kosh से
हमारी एक दिन हमको ख़ताएँ मार डालेंगी
उजड़ते जंगलों की बददुआएँ मार डालेंगी
अभी चेते नहीं जल्दी तो ऐसा दौर आएगा
धुँआ औ धूल, ज़हरीली हवाएँ मार डालेंगी
न होगा काम गुर्दों, फेफड़ों से जब प्रदूषण में
हकीमों की हमें महँगी दवाएँ मार डालेंगी
कहीं आँधी, कही सूखा, कहीं तूफ़ान आएँगे
कहीं इस भाँति बरसेंगी घटाएँ मार डालेंगी
न होंगे पेड़ पौधे तो कहाँ से मेघ बरसेंगे
धरा ये आग उगलेगी फ़ज़ाएँ मार डालेंगी
न होगा नीर नदियों में, जलाशय सूख जाएँगे
बहुत पानी बहाने की सज़ाएँ मार डालेंगी
अगर सच पूछिए तो 'देव' ऐसा जान पड़ता है
तरक्की की हमें अंधी गुफाएँ मार डालेंगी