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हमारी ज़िन्दगी क्या क्या हमें जलवे दिखाती है / शोभा कुक्कल
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हमारी ज़िन्दगी क्या क्या हमें जलवे दिखाती है
कभी ये मुस्कुराती है कभी आंसू बहाती है
ज़रूरी है वहां दीपक जहां सूरज नहीं दिखता
गुफाओं में कहीं दीपक की लौ रस्ता दिखाती है
बदन से रूह का रिश्ता पुराना है बहुत लेकिन
ख़ुदा जाने जुदा होकर ये फिर किस ओर जाती है
समंदर है ग़मों का दोस्तो गहरा बहुत गहरा
हमारी ज़िन्दगी इस में खुशी के पल गंवाती है
गुज़ारो चंद लम्हे जाके संतों की भी संगत में
यह उन की सीख है जो मैल को मन से हटाती है
बहुत दुख दर्द के मारे हैं इस दुनिया में रोने को
जो हैं खुशबख्त कुदरत उन को तो खुद ही हंसाती है।